माँ के बदन की सुंदरता को देखा और अपना हिलाया

Sunday 18 February 2018

मैं रोहन आपको अपनी सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूँ; यह मेरी और मेरी माँ की कहानी हे; अपनी माँ के बारे में भी आपको बता देता हूँ, उसका नाम मोहिनी है; उम्र ४५ साल; रंग गोरा, शरीर पतला है; उनका फिगर 32-30-34 है.
दोस्तो, अब मैं आपको जो बताने जा रहा हूँ; गर्मी के दिन थे, मैं, दादी-दादा बाहर के कमरे में सो रहे थे; दोपहर का टाइम था, मेरी आँख खुल गई.
मैंने सोचा कि भाई के साथ खेल लूँ; तो अंदर के कमरे की तरफ गया; कमरा अंदर से बंद था, मैंने खिड़की से देखा तो माँ नीचे लेटी हुई थी; और पापा उनके ऊपर थे, धक्के लगा रहे थे.
फिर मैं वापिस बाहर के कमरे में आ गया; लेकिन मेरे दिमाग़ में बस वही सीन चल रहा था; कुछ दिन मैं ऐसे ही कोशिश करता रहा कि वो सीन देखने को मिल जाए लेकिन नहीं मिला.
थोड़े दिन बाद मेरी मुलाकात मेरे दोस्त के दोस्त से हुई; उसने एक दिन मुझे चुदाई की कुछ तस्वीरें दिखाई; मुझे देख कर अच्छा लगा; कुछ दिन बाद वो मुझे फिर मिला उसने मुझे एक सेक्स स्टोरी पढ़ाई; मुझे बहुत अच्छा लगा; ऐसे ही मैं हर सन्डे उसके घर जाने लगा और सेक्स स्टोरी पढ़ने लगा.
काफ़ी दिन ऐसे ही चलता रहा; इसी बीच में उसने मुझे लंड को हिलाना भी सीखा दिया; ऐसे ही मैं कहानियाँ पढ़ कर अपना हिलाता था; एक दिन मैंने एक और माँ बेटे की कहानी पढ़ी; उसे पढ़ कर ऐसा लगा जैसे वो कहानी मेरी माँ के लिए ही लिखी गई हो; वही साइज़ का वर्णन, वैसी ही गांड की बात; मैं पागल सा हो गया था और पढ़ते पढ़ते ही मेरी छोटा सा लंड पूरा तन गया था.
मैं नीचे आया तो देखा कि माँ अपने कपड़े बदल रही थी; उनके गोरे बदन को देख कर मन किया कि अभी चाट लूँ और अपना लंड अभी माँ के अंदर डाल दूँ; लेकिन डरता था इसलिए कुछ नहीं किया; और बाथरूम में जाकर अपना हिला कर खुद को शांत किया;
अब तो मैं बस माँ के ही ख्याल ले के अपना हिलाने लगा.
हमारे घर में बाथरूम नहीं था; इसलिए माँ आँगन में ही नहाती थी; एक दिन माँ नहा रही थी; मैं आया तो दरवाजा बंद था; मैंने बोला- माँ दरवाज़ा खोलो, मुझे अंदर काम है
तो माँ ने कहा- अभी मैं नहा रही हूँ; थोड़ी देर के बाद खोलती हूँ.
लेकिन मैं दरवाजे की दरार से झाँकता रहा; अब मुझे माँ टॉवल लपेट कर आती हुई दिखाई दी तो मैं गेट से हट गया.
अब माँ ने दरवाज़ा खोल दिया; और जाने लगी; मैं माँ की सेक्सी जाँघों को घूर रहा था; वो बिल्कुल चिकनी थी; मैंने आँगन में झाँकने की जगह खोजना शुरू कर दिया; पहले तो दरवाजे से कोशिश की; लेकिन बात नहीं बनी.
हमारे घर में एक कमरा हे; उस की खिड़की आँगन में खुलती है; वो खिड़की हमेशा बंद ही रहती है; और उसका दरवाजा अंदर रूम की तरफ खुलता है.
जैसे ही मैंने खिड़की को देखा; मैं भाग कर उस कमरे में गया और खिड़की को खोला; मैंने खिड़की को थोड़ा सा खुला रखा जिसमें से मैं उस जगह को आराम से देख सकता था; बाकी बंद कर दिया ताकि कोई आँगन से मुझे आसानी से ना देख पाए;
और वहां पर अपने बैठने के लिए जगह बनाई.
अब मैं आँगन में गया और खिड़की से 2 कदम दूर होकर देखने की कोशिश की कि अंदर का कुछ दिख रहा है या नहीं; बाहर जाली और अंदर रूम में अंधेरा होने के कारण आँगन से अंदर रूम का कुछ दिखाई नहीं दे रहा था.
अब मैं कल के इंतज़ार में था; पूरे दिन बस कल जो होने वाला था; उसी का ख्याल था.
रात हो गई थी; मैं सो गया लेकिन रात में ही मेरी आँख खुल गई; मैं उठा तो देखा सब सो रहे है;फिर मैं उठा, मैंने पानी पिया और माँ की चारपाई की तरफ देखा माँ करवट लेके सो रही थी, उनका शर्ट थोड़ा ऊपर उठा हुआ था और सलवार थोड़ी टाइट थी जिस वजह से माँ की गांड की पूरी गोलाई नज़र आ रही थी.
जैसी ही मेरी नज़र उस पर पड़ी तो माँ की गांड मुझे खींचने लगी; और मैं भी माँ की गांड की तरफ खींचता चला गया; मैं माँ की गांड के नज़दीक खड़ा था और मेरे हाथ माँ की गांड की तरफ बढ़ रहे थे.
जैसे ही मेरे हाथ ने माँ की नर्म गोल गांड को स्पर्श किया; मेरे पूरे शरीर में करंट दौड़ गया; मैं अपने आप के ऊपर कंट्रोल नहीं कर पा रहा था; मन कर रहा था कि अभी सलवार को फाड़ दूँ; और माँ की गांड पर अपने होंठों से अपनी मोहर लगा दूँ.
मेने एक बार फिर से दोनों चूतड़ को हाथ से दबाया और अपने बेड पर आकर लंड को हिला कर सो गया; अब वो दिन आ गया था, जब मुझे मा की गांड के दर्शन होने वाले थे; मैं सुबह उठा और खेलने चला गया; लेकिन खेलने में बिल्कुल मन नहीं लग रहा था; मैं तो इंतज़ार कर रहा था जब माँ नहाने जाएगी.
अब एक बज रहा था, तभी मुझे आँगन का दरवाजा बंद होने की आवाज़ आई; बस मैं तो इसी पल का इंतज़ार कर रहा था; मैं झट से उठा और रूम में गया और बाहर झाँका, बाहर का सब कुछ बिल्कुल साफ दिख रहा था; माँ आई, उसने डार्क चॉकलेट रंग का सलवार सूट पहना हुआ था और उनके हाथ में टॉवल था.
माँ का चेहरा मेरी साइड था; अब माँ ने कपड़े उतरने शुरू किए; पहले वो शर्ट उतार रही थी, जैसे जैसे शर्ट ऊपर उठ रहा था मेरी आँखें फटी जा रही थी; और धीरे धीरे उनका गोरा पेट मेरे सामने आता जा रहा था; मैं उस टाइम अपनी पलकें भी नहीं झपका रहा था क्योंकि मैं एक भी पल को मिस नहीं करना चाहता था.
शर्ट उठते उठते ब्रा तक पहुँच गया था; माँ का पेट कसा हुआ था और किसी हिरोइन के जैसा लग रहा था. अब शर्ट बूब्स के ऊपर गले तक जा चुका था; और मैं आँखें फाड़ फाड़ फाड़ कर माँ की चुची घूर रहा था; माँ शर्ट निकाल चुकी थी और हैंगर पर टाँग रही थी; और मेरी नज़र माँ के चूचों से नहीं हट रही थी; छोटे संतरा जैसे टाइट बूब्स काले रंग की ब्रा में क़ैद थे.
अब माँ मेरे सामने सिर्फ़ काले रंग की ब्रा और पेंटी में थी; उनके दूधिया जिस्म पर काली रंग की पेंटी बहुत अच्छी लग रही थी जैसे कि उनके खूबसूरत जिस्म को नज़र लगने से बचा रही हो.
अब माँ ने ब्रा का हुक खोला और ब्रा को निकाल दिया; उनके बूब्स अब आज़ाद पंछी की तरह हवा में आ गये थे; और पूरा सख्ती के साथ खड़े हुए थे; उनके चूचुक गहरे गुलाबी रंग के थे और उठे हुए थे; मेरा तो अब बुरा हाल हो रहा था, मेरी पैंट के अंदर तंबू बन चुका था.
अब मैं इंतज़ार में था कि कब पेंटी उतरे; लेकिन मा ने पेंटी नहीं उतारी और नहाने बैठ गई; वो मेरी तरफ ही मुँह कर के बैठी हुई थी और अपने पैरों को धो रही थी; उनके पैर बहुत ही चिकने लग रहे थे; मैंने अपना लंड पैंट से बाहर निकाल लिया था और धीरे धीरे हिलाने लग गया था.
अब मा ने पानी गर्दन के नीचे गिराया; अब मा ने कमर के ऊपर तक और पैरों पर साबुन लगाया और अपने शरीर को मसलने लगी; पहले गर्दन के नीचे से और अब बूब्स तक हाथ आ गये थे.
मा अब बूब्स को रग़ड़ रही थी; कुछ अलग ही तरीके से वो गोल गोल घुमा रही थी; शायद तभी उनके बूब्स अभी भी गोल और सख़्त थे.
वो बीच बीच में बूब्स को दबा भी रही थी; और बूब्स हाथों की पकड़ से फिसल जा रहे थे; जैसे जता रहे हों कि इतनी आसानी से हाथ नहीं आएँगे.
अब मा ने अपनी जाँघों को मसला और साबुन उठा कर पेंटी के अंदर घुसा दिया; अब माँ खड़ी हो गई; और उनकी कमर मेरी तरफ की तो उनकी गोल गांड मेरे सामने थी; जो उनकी पेंटी में पूरी समा नहीं पा रही थी.
मेरे तो होश उड़ गये थे और मेरे हाथ की रफ़्तार तेज़ हो गई थी जिस गांड के लिए मैं पागल था वो आज मेरे सामने थी, वो भी आधी नंगी; अब मा ने पेंटी में हाथ डाला और नीचे सरकाने लगी; मैं तो पागल हो उठा, मुझे मा के चूतड़ की दरार दिखना शुरू हो गई थी और वो दरार बढ़ती जा रही थी.
और कुछ सेकिंड के बाद माँ की नंगी गांड मेरे सामने थी; और वो भी दो कदम की दूरी पर.
आज मेरा लंड गर्म बन गया था; और मेरा हाथ तो जैसे बिजली की रफ़्तार से चल रहा था; माँ की गांड बिल्कुल गोल थी; और एक भी दाग नहीं था.
अब मा साबुन उठाने के लिए झुकी तो मेरे होश उड़ गये मेरा सारा खून मालूम नहीं कितनी रफ़्तार से दौड़ रहा था; यह पहली बार था जब मैं मा की गांड का छेद देख रहा था.
अब मा चूत को रगड़ रही थी फिर अपने चूतड़ रगड़े; फिर मा अपने पैर रगड़ने के लिए झुकी; मुझे फिर से मा की गांड का छेद दिखाई देने लगा; मा के झुकने के कारण उनकी गहरे गुलाबी रंग चूत भी मुझे दिख रही थी.
मा की चूत की फांकें खुली हुई थी और मुझे छेद साफ नज़र आ रहा था; मैंने पहली बार मा की चूत और माँ की गांड को देखा था; माँ पैर रगड़ते हुए ऊपर नीचे हो रही थी जिससे माँ की गांड का छेद खुल और बंद हो रहा था; जैसे मुझे बुला रहा हो.
मैं बिल्कुल पागल हो गया था; मन कर रहा था कि अभी चला जाऊँ मा के पीछे और अपने होंठ मा की चूत और गांड पर रख दूँ; और चाट चाट कर सारा रस पी जाऊँ; और फिर अपना पूरा लंड मा की गांड में उतार कर माँ की चीखें निकाल दूँ; लेकिन मैं अपने हाथ से लंड हिलने के सिवा कुछ नहीं कर सकता था.
मा अब अपने ऊपर पानी डाल रही थी; और मैं ज़ोर ज़ोर से लंड हिला रहा था; मेरी साँसें काफ़ी तेज़ हो चुकी थी; मा अब नहा चुकी थी वो खड़ी हुई और अपने ऊपर एक डिब्बा पानी डाला; फिर दूसरा डिब्बा पानी लेने के लिए जैसे ही झुकी; फिर से मा की गांड का छेद मेरे सामने था.
और तभी मुझे सिहरन सी हुई और मेरे लंड से पिचकारी निकलने लगी; आज मेरा लंड पानी छोड़े ही जा रहा था; आज तक कभी भी मेरा इतना पानी नहीं निकला था; मैं निढाल सा पड़ गया था और पसीने से लथपथ हो गया था और ऐसे ही पड़े हुए मा को देख रहा था.
मा टॉवल से अपने गोरे जिस्म को पोंछ रही थी; सारा जिस्म पोंछने के बाद टॉवल अपने जिस्म से लपेटा और फिर माँ अपनी गोल गोल मखमली गांड को हिलाते हुए वहाँ से चली गई.
अब मैं जब भी मौका मिलता; माँ को नहाते हुए देखने लग गया और देख देख कर अपना लंड हिलाने लग गया और रातों में माँ की गांड पर हाथ फिराने और दबाने लग गया.

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