बहन भाई का मज़ा
Sunday, 28 April 2013
पर कुछ दिनों से निशा महसूस कर रही थी की उसका भाई उसकी सहेली गोरी में ज्यादा रूचि ले रहा हें तो उसकी गांड सुलग उठी ,उसने मनही मन सोचा की संजय के लंड पर पहला हक़ उसे हें|उसने एक दिन रात में संजय को पकड़ लिया और अपने बोबे फूलती हुई संजय से बोली में तुझे चुदने लायक लगती हूँ या नहीं , संजय का ध्यान अचानक ही उसके लटकते आमों पर चला गया उसका दिमाग अचानक ही काम करना छोड़ गया.. पर जल्द ही उसने खुद को संभाल लिया और नजरें घुमा कर कहा, मैं तुम्हे उस नजर से थोड़े ही देखता हूँ निशा !
निशा: एक बार देख कर बताओ ना भईया... हममें ज्यादा सुन्दर कौन है ? निशा ने अपनी कमर को थोड़ा झटका दिया, जिससे उसके आमों का थमाव फिर से गतिमान हो गया
संजय की नजरें बार-बार ना चाहते हुये निशा की गोलाईयों और गहरायी को चख रही थी..., तुम बिलकुल पागल हो निशा ! जब नजरों ने उसके दिमाग की ना मानी तो वो वहाँ से उठकर अपनी किताबों में कुछ ढूँढने का नाटक करने लगा... पर उसकी आँखों के सामने निशा की चूचियाँ ही जैसे लटक रही थी... हिलती हुयी..!
निशा कुछ बोलने ही वाली थी की उसकी मम्मी ने कमरे में प्रवेश किया, क्या बात है निशा ? आज पढ़ना नहीं है क्या..?
निशा ने मम्मी को टाल दिया, मम्मी; मुझे भईया से कुछ सीखना है... मैं लेट तक आऊँगी...
संजय के मन में एक बार आया की वो मम्मी को कह दे की वह झूठ बोल रही है... पर वो एक बार और... कम से कम एक बार और उन मस्तियों को देखने का लालच ना छोड़ पाया... और कुछ ना बोला
उनकी मम्मी निशा को कहने लगी, ठीक है निशा, तेरे पापा सो चुके हैं.. मैं भी अब सोने ही जा रही थी.. संजय का दूध रसोयी में रखा है ठंडा होने पर उसको दे देना और हाँ सोने से पहले अपना काम पूरा कर लेना तू आजकल पढ़ाई कम कर रही है और वो चली गयी....
निशा ने अपनी मम्मी के जाते ही अपनी कमीज का एक और बटन खोल दिया और फिर से उसी सवाल पर आ गयी, बताईये ना भईया.. ! क्या गौरी मुझसे भी सुन्दर है... ?
संजय ने कोशिश की पर उसकी और मुँह ना घुमा पाया, निशा.. ! तुम इस टोपिक को बंद कर दो... और जाकर पढ़ लो !
निशा: भैया ! मैं अपनी किताबें यहीं ले आऊँ क्या ? मैं यहीं पढ़ लूंगी...
लाख चाह कर भी संजय उसको मना नहीं कर पाया, ठीक है... लेकिन पढ़ना है...
निशा अपना बैग उठा लायी और आते-आते मम्मी को भी बता आयी की मैं भईया के पास ही पढूंगी... देर रात तक !
निशा संजय के बराबर में आकर बैठ गयी और अपनी किताब खोल ली संजय के दिमाग में एक बार और अपनी छोटी बहन की उन सुन्दर और सुडौल चुचियों को देखने का भूत सवार होता ही गया...
संजय ने अपनी नजर को तिरछा करके निशा की ओर देखा पर शायद वो उम्मीद छोड़ कर सच में ही पढ़ाई करने लगी थी अब वो अपनी मस्तियों को छलकाने की बजाय अपने कमीज से उनको ढके हुये थी... पर कमीज के ऊपर से ही वो संजय की आँखों को अपने से हटने ही नहीं दे रही थी... आह ! मैंने पहले कभी इन पर ध्यान क्यूँ नहीं दिया.. वो उस पल के लिये गौरी को भूल कर अपनी बहन की मस्तियों का दीवाना हो गया... ओर उन्हें कमीज के ऊपर से ही बार-बार घूरता रहा... कैसे इनको अपने हाथों में थाम कर सहलाऊँ ? पर वह तो इसका सगा भाई था... सीधा अटैक कैसे करता...
ऐसा नहीं था की निशा को अपनी चुचियों पर चुभती संजय की नजरें महसूस ना हो रही हों... पर उसका हाल भी संजय जैसा ही था... सीधा अटैक कैसे करती ?
निशा को एक प्लान सूझा... वह उलटी होकर लेट गयी अपनी कोहनियाँ बेड पर टिका कर... इस पोसिशन में उसकी चूचियाँ बाहर से इतनी ज्यादा दिखायी दे रही थी थोड़ा सा नीचे झुक कर संजय उसके निप्पलस के चारों ओर की लाली भी देख सकता था... संजय ने वैसा ही किया... उसने थोड़ा सा ऊपर होकर अपनी कोहनी बेड पर टिका दी ओर टेढा होकर लेट सा गया संजय की आँखें जैसे चमक गयी... उसको ना केवल चुचियों के अन्तछोर पर दमकती हुयी लाली परन्तु उस लाली का कारन उनकी चुचियों के केंद्र में दो ताने हुये गुलाबी निप्पल भी साफ दिखायी दे रहे थे... संजय सब मर्यादाओं को ताक पर रखता चला गया संजय: निशा.. ! आज यहीं सोना है क्या ? उसकी आवाज में वासना का असर साफ सुनायी दे रहा था... वह जैसे वासना से भरे गहरे कुएँ से बोल रहा हो !
निशा उसकी चुचियों को देख पागल हो चुके संजय को देखकर मुस्कुरायी उसका भाई अब जरूर उसके योवन की ताकत को पहचान लेगा..
निशा: नहीं भईया ! अपने कमरे में ही सोऊंगी अभी चली जाऊँ क्या ? उसकी आवाज में व्यंग्य था... संजय की बेचैनी पर व्यंग्य...
संजय हकलाने लगा... उसको समझ में नहीं आ रहा था उस को अपने पास से जाने से रोके कैसे, हाँ.. मम..मेरा मतलब है.. नहीं.. तुम यहीं पढ़ना चाहो तो पढ़ लो... ओर बल्कि यहीं पढ़ लो.. अकेले मुझे भी नींद आ जायेगी.. बेशक यहीं पर सो जाओ ! ये बेड तो काफी चौड़ा है... इस पर तो तीन भी सो सकते हैं... जब हम छोटे थे तो इकट्ठे ही तो सोते थे.. निशा को अपने साथ ही सुलाने के लिये वो अपने इतिहास तक की दुहाई देने लगा..
निशा भी तो यही चाहती थी, ठीक है भईया ! ओर फिर से किताब का पन्ना पलट कर पढने की एक्टिंग करने लगी....
संजय को अब भी चैन नहीं था... उसको ये जान-ना था की निशा ने 'ठीक है' यहाँ पढने के लिये बोला है या यहाँ सोने के लिये ! वो पक्का कर लेना चाहता था की उम्मीदें कहाँ तक लगाये..... देखने भर की या छूने तक की भी उसने निशा से पूछा, तुम्हारी चादर निकल दूँ क्या ओढ़ने के लिये.... निशा ने जैसे ही उसकी आँखों में झाँका उसने अपनी बात घुमा दी,........ अगर यहाँ सोना हो तो !
निशा के लिये भी यहाँ सोना आसन हो गया... नहीं तो वह भी यही सोच रही थी की यहाँ पढ़ते-पढ़ते चुचियाँ लटका कर सोने की एक्टिंग करनी पड़ेगी..., हाँ ! भईया... निकाल दो.. मैं यहीं सो जाती हूँ... सोना ही तो है...
दोनों की आँखों में चमक बराबर थी... दोनों की आँखों में रिश्ते की पवित्रता पर वासना हावी होती जा रही थी.... पर दोनों में से किसी में शुरुआत करने का दम नहीं था
सोच विचार कर निशा ने वहीँ से बात शुरू कर दी जहाँ उसके भाई ने बंद करवा दी थी.. संजय की आँखों को अपनी छातियों की ओर लपकती देखकर निशा को यकीन था की अब की बार वो इस बात को बंद नहीं करवायेगा, भईया.. ! एक बात बता दो ना.. प्लीस... दुबारा नहीं पूछूँगी !
संजय को भी पता था वो क्या पूछेगी उसने अपनी किताब बंद कर दी ओर उसकी चुचियों में कुछ ढूंढता हुआ सा बोला, बोल निशा ! तुझे जो पूछना है पूछ ले... मैं बता दूँगा... जितनी चाहे बात पूछ. आखिर तेरा भाई हूँ... मैं नहीं बताऊँगा तो कौन बतायेगे तुझे !
निशा ऐसे ही लेटी रही अपनी चुचियों को लटकाये... लटकी हुयी भी वो इतनी सख्त हो चुकी थी की निप्पल मुँह उठाने लगे थे बाहर निकलने के लिये, आपको कौन ज्यादा सुन्दर लगती है ? मैं या गौरी...!!
संजय ने उसकी गोल मटोल चुचियों में अपनी नजरें गड़ाये हुये कहा, निशा ! मैंने तुम्हे कभी उस नजर से देखा ही नहीं.. !
'किस नजर से' निशा ने अनजान बनते हुये अपनी जवानियों को उसकी ओर जैसे उछाल ही दिया... लेटे-लेटे ही एक मादक अंगड़ाई...
संजय के मुँह में कुत्ते की तरहा बार-बार लार आ रही थी... भुखे कुत्ते की तरहा, उस नजर से.. जिस नजर से अपनी प्रेमिका और बीवी को देखते हैं...
अपने भाई के मुँह से प्रेमिका और पत्नी शब्दों को सुनकर वो ललचा सी गयी; एक बार उसकी प्रेमिका बनने के लिये... पर लाख चाहने पर भी वो अपनी इच्छा जाहिर ना कर पायी, पर क्या सुन्दरता का पैमाना प्रेमिका और पत्नी के लिये ही होता है...?
संजय मन ही मन सोच रहा था, होता तो नहीं... सुन्दरता तो हर रूप में हो सकती है..! पर वह तो उसको अपनी प्रेमिका ही बना लेना चाहता था... और उसके छलकते कुँवारे प्यालों को देखकर तो आज रात ही... वासना हावी होने पर कुछ भी सही या गलत नहीं होता... बस मजा देना और मजा लेना ही सही है... और उससे वंचित रखना गलत, जिस सुन्दरता की तुम बात कर रही हो; वो तो आदमी प्रेमिका में ही देख सकता है... भला बहन में मैं कैसे वो सुन्दरता देख सकता हूँ ?
निशा को पता था वो कब से उसकी वही 'सुन्दरता' ही तो देख रहा है, तो क्या तुम एक पल के लिये मुझे प्रेमिका मान कर नहीं बता सकते की तुम्हारी ये प्रेमिका सुन्दर है या वो ?
संजय: ठीक है तुम दरवाजा बंद कर दो ! मैं कोशिश करूँगा देख कर बताने की !
संजय को लगा अगर अब भी उसने कुछ नहीं किया तो मर्द होने पर ही धिक्कार है.. हवस पूरी तरहा से उसके दिलो दिमाग पर छायी हुयी थी...
निशा की खुशी का ठिकाना ही ना रहा उसने झट से दरवाजे की कुण्डी लगा दी और वापस बेड पर आकर सीधी बैठ गयी अब उसको चूचियाँ दिखाने की जरुरत नहीं थी उन्होंने तो अपना जादू चला दिया था उसके सगे भाई पर..
संजय कुछ देर तक यूँही कपड़ों के ऊपर से देखता रहा.. वो कहीं से भी उसको गौरी से कम नहीं लग रही थी... कम से कम उस पल के लिये, देखो निशा ! मेरी किसी बात का बुरा मत मानना... मैं जो कुछ भी करूँगा या करने को कहूँगा वो यही जानने के लिये करूँगा की तुम सुन्दर हो या वो गौरी.... और वो भी तुम्हारे कहने पर... ओके ?
निशा: हाँ !.... ओके
वह बेताबी से मरी जा रही थी की जाने क्या होगा आगे !
संजय: उस कोने में जाकर खड़ी हो जाओ ! ये सुन्दरता मापने का पहला चरण है... जैसा मैं कहूँ करती जाना... अगर तुम्हे लगे की तुम नहीं कर पाओगी तो बता देना.... मैं बीच में ही छोड़ दूँगा... पर मैं तुम्हे ये पूरा काम हो गया तो ही बाताऊंगा की सुन्दर कौन है ! ठीक है... ?
निशा को यकीन था की उसकी उम्मीद से भी ज्यादा होने वाला है... वह शर्माती हुयी सी जाकर कोने में खड़ी हो गयी.... आज रात हो सकने वाली सभी बातों को छोड़ कर... उसके चेहरे पर अभी से हया की लाली दिखने लगी थी..
संजय ने निशा को अपने हाथ अपने सर से ऊपर उठाने को कहा... निशा ने वही किया... पर जैसे-जैसे उसके हाथ ऊपर उठते गये... उसकी गदरायी हुयी चूचियाँ भी साथ-साथ मुँह उठाती चली गयी... और नजरें अपने भाई की और तनी हुयी उसकी मस्तियों को देखकर उसी स्पीड से नीचे होती गयी... शर्म से...
अपने से करीब ६ फीट की दूरी पर खड़ी अपनी बहन की चुचियों को इस कदर तने हुये देखकर संजय की पैंट में उभार आने लगा... निशा के उत्तेजित होते जाने की वजाह से उसकी चुचियों के दाने रस से भरकर उसके कमीज से बाहर झाँकने की कोशिश कर रहे थे.. संजय उनकी चौंच को साफ-साफ अपने दिल में चुभते हुये महसूस कर रहा था वह सोच ही रहा था की अब क्या करुँ.. तभी निशा बोल पड़ी, भईया ! हाथ दुखने लगे हैं... नीचे कर लूँ क्या.. वह नजरें नहीं मिला रही थी...
संजय तो भूल ही गया था की उसकी बहन को सुन्दरता की पहली परीक्षा देते हुये ५ मिनट से भी ज्यादा हो गये हैं..., घूम जाओ.. और हाथ नीचे कर लो !
निशा कहे अनुसार घूम गयी... अब नजरें मिलने की संभावना ना होने की वजह से दोनों को ही आगे बढ़ते हुये शर्म कम आ रही थी...
संजय ने उसके चूतडों को जी भर कर देखा... पर कमीज गांड तक होने की वजह से वो गांड की मस्त मोटाई का तो अंदाजा लगा पा रहा था पर गांड की दोनों फाँकों का आकर प्रकार जानने में उसको दिक्कत हो रही थी... पर वो अपना कमीज हटाने की कहते हुये हिचकिचा रहा था... काफी देर सोचने के बाद उसने निशा से कहा, निशा ! अजीब लगे तो मत करना... अगर निकाल सको तो अपना कमीज निकाल दो...!
यह बात सुनते ही निशा के पैर काँपने लगे... उसने तो नीचे समीज तक नहीं पहना हुआ था, पर मैंने नीचे.... आगे वो कुछ ना बोली पर संजय समझ गया..., मैंने पहले ही कह दिया था... मर्ज़ी हो तो करो वरना आ जाओ ! पर में फिर बता नहीं पाऊँगा सच-सच....
निकालना कौन नहीं चाहता था... वो तो बस पहले ही साफ-साफ बता रही थी की कमीज निकालने के बाद वो.. आह!... नंगी हो जायेगी... ऊपर से... अपने सगे भाई के सामने...
निशा के हाथों ने कमीज का निचला सिरा पकड़ा और उसके शरीर का रोम-रोम नंगा करते चले गये... निचे से ऊपर तक.. उसके भाई के सामने...
संजय उसकी पतली कमर, उसकी कमर से निचे के उठान और कमर का मछली जैसा आकर देखते ही पगला सा गया... आज तक उसने किसी लड़की को इस हद तक बेपर्दा नहीं देखा था... वह बेड पर बैठ गया... और पीछे से ही उसकी नंगी छातियों की कल्पना करने लगा...
निशा का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था... वो सोच रही थी की सिर्फ सुन्दरता देखने के लिये तो ये सब हो नहीं सकता.. आखिर संजय ने गौरी को कब ऐसे देखा था... पर उसको आम खाने से मतलब था... पेड़ गिनने से नहीं... और आम वो छक-छक कर खा रही थी... तड़पा-तड़पा कर.... जी भर कर... उसको पता नहीं था की इस सौंदर्य परीक्षा का अगला कदम कौन सा होगा... पर वो ये भली भति जान चुकी थी की फाइनल एक्साम में वो आज चुद कर रहेगी... और गजब हो गया... संजय ने उसको आँखें बंद करके घूम जाने को कहा.... आँखें तो वो वैसे भी नहीं खोल सकती थी.. नंगी होकर अपने भाई से नजरें मिलाना बहुत दूर की बात थी... घूमते हुये ही उसका सारा बदन वासना की ज्वाला में तप कर काँप रहा था... उसका सारा बदन जैसे एक सुडौल ढाँचे में ढाला हुआ सा संजय की और घूम गया.. उसका लम्बा-पतला और नाजुक पेट और उसके ऊपर तने खड़ी दो संतरे के आकर की रस भरी चूचियाँ सब कुछ जैसे ठोस हो गया हो... अब उसकी छातियों का रहा सहा लचीलापन भी जाता रहा... उसकी चुचियों के चूचक भी अब तक बिलकुल अकड़ गये थे..
संजय ने इतना भव्य शरीर कभी ब्लू फिल्मों में भी नंगा नहीं देखा था... उसका हाथ अपने आप ही अपने तब तक तन चुके लंड को काबू में करने की चेष्टा करने लगा... पर अब लंड कहाँ शांत होने वाला था... वो भीतर से ही बार-बार फुंफकार कर अपनी नाराजगी का इजहार कर रहा था मानो कह रहा हो, अभी तक में बाहर क्यूँ हूँ तेरी बहन की चूत से....
निशा के लिये हर पल मुश्किल हो रहा था... अब तक उसका शरीर मर्द के हाथों का स्पर्श माँगने लगा था... तड़प दोनों ही रहे थे... पर झिझक भी दूर होने का नाम नहीं ले रही थी... दोनों की... अगर वो भाई-बहन ना होते तो कब का एक दुसरे के अन्दर होते.... पूरी तराह...
निशा से ना रहा गया, भईया यहाँ तक में कैसी लग रही हूँ मतलब साफ था... परीक्षा तो वो पूरी ही देना चाहती थी... पर अब तक का हिसाब-किताब पूछ रही थी...
संजय कुछ ना बोला... बोला ही नहीं गया... उसने कहना तो चाह था, अब बस कण्ट्रोल नहीं होता... आ जा पर वो कुछ ना बोला...
निशा ने लरजते हुये होंटों से अपनी सारी शक्ति समेटते हुये कह ही दिया..., भईया.. ! सलवार उतार दूँ क्या ? गीली होने वाली है....
'नेकी और पूछ-पूछ' संजय को अगले 'ब्यूटी टेस्ट' के लिये कहना ही नहीं पड़ा और ना ही निशा ने अपने भईया से इजाजत लेने की जरुरत समझी... उसने सलवार उतार दी... अपनी पैंटी को साथ ही पकड़ कर... संजय तो बस अपनी बहन के अंगों की सुन्दरता देखकर हक्का-बक्का रह गया... काश उसको पता होता... उसकी बहन ऐसा माल है.. तो वह कभी उसको बहन मानता ही नहीं... उसकी चूत टप्प-टप्प कर चूँ रही थी... उसकी चूत का रस उसकी केले के तने जैसी चिकनी और मुलायम जाँघों पर बह कर चमक रहा था... और महक भी रहा था... संजय से रहा ना गया, ये रस कैसा है ? उसने अपनी आँखें बंद किये आनंद के मारे काँप रही अपनी प्यारी और सुन्दर बहन से पूछा... ?
निशा: यये इसमें से निकल रहा है.. निशा ने कोई इशारा ना किया... बस 'इसमें से' कह दिया...
संजय: किस्में से ? अनजान बनने की एक्टिंग करते हुये पूछा
निशा का एक हाथ अपनी छातियों से टकरा कर निचे आया और उसकी चूत के दाने के ऊपर टिक गया, इसमें से ! उसकी छातियाँ लम्बी-लम्बी साँसों की वजाह से लगातार ऊपर नीचे हो रही थी..
संजय थोड़ा सा खुल कर बोला, नाम क्या है जान इसका ? उसकी बहन उसकी जान बन गयी थी... उसकी प्रेमिका !
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निशा शर्म से दोहरी हो गयी... पर खुलना वो भी चाहती थी....,"... च..... चूउउउउ...?
संजय: पूरा नाम ले दो ना !... प्लीस जान... बस एक बार
निशा: ...चूत ! और वो घूम गयी दिवार की तरफ... उसकी शर्म ने भी हद कर दी थी.. कोई और होती तो इसके बाद कहने सुनने के लिये कुछ बचा ही ना था... बस करने के लिये बचा था... बहुत कुछ !
संजय ने उसकी गांड को ध्यान से देखा... उसके दोनों चूतड़ उसकी चुचियों की भाँती सख्त दिखायी दे रहे थे...गांड के नीचे से उसकी उभर आयी चूत की मोटाई झलक रही थी... और अब भी उसकी चूत टपक रही थी...
संजय उसके पीछे गया और उसके कान में बोला... जान तुमसे ज्यादा सुन्दर कोई हो ही नहीं सकता...
निशा उसके भाई की परीक्षा में प्रथम आयी थी अब सहना उसके वश में नहीं था आखिर उसको भी तो फर्स्ट आने का इनाम मिलना चाहिए.. वो घूमी और अपने भाई... सॉरी..! प्रेमी बन चुके भाई से लिपट कर अपनी तड़प रही चुचियों को शांत करने के कोशिश की...!
संजय को उसकी चूचियाँ अपनी छाती में चुभती हुयी सी महसूस हो रही थी... वह वही बैठ गया और अपनी प्रेमिका बहन की तरसती चूत पर अपने होंट टिका दिये....
निशा: प्लीस.. बेड पर ले चलो ! उसने अपनी सुन्दरता का इनाम माँगा...
संजय ने उसको दुल्हन की भाँती उठा लिया... और ले जाकर बेड पर बिछा कर उसको इनाम देने की कोशिश करने लगा.... उसके होटों पे...
उफ्फ्फ्फ्फ्फ ! सहन नहीं होता... जल्दी नीचे डाल दो ! निशा बौखलाई हुयी अपनी चूत की फाँकों के बीच उँगली घुसाने की कोशिश कर रही थी..
संजय ने मौके की नजाकत को समझा... वह नीचे लेट गया और निशा को अपने ऊपर चढा लिया... दोनों और पैर करके...
निशा को अब और कुछ बताने की जरुरत नहीं थी.. वो अपनी चूत को उसके लंड पर रखकर घिसने लगी... लगातार तेजी से... और संजय हार गया... संजय के लंड ने पिचकारी छोड़ दी... उसकी चूत की गर्मी पाते ही... और लंड का अमूल्य रस उसकी चूत की फाँकों में से बह निकला... संजय ने बुरी तरहा से निशा को अपनी छाती पर दबा लिया और "आई लव यू निशा" कहने लगा.. बार-बार... जितनी बार उसके लंड ने रस छोड़ा... वह यही कहता गया... निशा तो तड़प कर रह गयी... वह लगातार उसके यार के लंड को अपनी चूत में देना चाहती थी पर लगातार छोटे हो रहे लंड ने साथ ना दिया... वह बदहवास सी होकर संजय की छाती पर मुक्के मारने लगी... जैसे संजय ने उसको बहुत बड़ा धोका दे दिया हो.. पर संजय को पता था उसको क्या करना है... उसने निशा को नीचे गिराया और अपना रसभरा लंड उसके मुँह में ठूस दिया... वासना से सनी निशा ने तुंरत उसको 'मुँह में ही सही' सोचकर निगल लिया... और उसके रस को साफ करने लगी.. जल्दी जल्दी...
लंड भी उतनी ही जल्दी अपना सम्पूर्ण आकर प्राप्त करने लगा... ज्यों-ज्यों वह बढ़ा निशा का मुँह खुल गया और लंड उसके मुँह से निकलता गया... आखिर में जब संजय के लंड का सिर्फ सुपाड़ा उसके मुँह में रह गया तो निशा ने उसको मुँह से निकालते ही बड़ी बेशर्मी से संजय से कहा, म्म्मेरी चूत में दाल दो इसको... मैं मर जाऊँगी नहीं तो...
संजय ने देर नहीं लगायी वह निशा के नीचे आया और उसकी टाँगे उठा कर उन्हें दूर-दूर कर दिया निशा की चूत गीली थी और जैसे जोर-जोर से साँसे ले रही थी संजय ने अपना लंड उसकी चूत के छेद पर रख दिया निशा को पता था मुकाबला बराबर का नहीं है उसने अपने आप ही अपना मुँह बंद कर लिया
संजय ने दबाव बढ़ाना शुरू किया तो निशा की आँखें बाहर को आने लगी दर्द के मारे.. पर उसने अपना मुँह दबाये रखा.. और 'फच्च' की आवाज के साथ लंड के सुपाड़े ने उसकी चूत को छेद दिया ईईईईई... दर्द के मारे निशा बिलबिला उठी वह अपनी गर्दन को 'मत करो के इशारे में इधर-उधर पटकने लगी संजय ने कुछ देर उसको आराम देने के इरादे से अपने 'ड्रिलर' को वहीँ रोक दिया और उसकी छातियों पर झुक कर उसके तने हुये दाने को होंटों के बीच दबा लिया निशा क्या डर क्या शर्म सब कुछ भूल गयी उसका हाथ अपने मुँह से हटकर संजय के बालों में चला गया.. अब संजय उसके होंटों को चूस रहा था पहले से ही लाल होंट और रसीले होते गये.. और उनकी जीभ एक दुसरे के मुँह में कबड्डी खेलने लगी.. कामदेव और रति दोनों चरम पर थे.. प्रेमिका ने अपने चूतडों को उठाकर लंड को पूरा खा सकने की सामर्थ्य का अहसास संजय को करा दिया संजय उसके होंटों को अपने होंटों में दबाये जोर लगाता चला गया बाकी काम तो लंड को ही करना था वह अपनी मंजिल पर जाकर ही रुका.. संजय ने लंड आधा बाहर खींचा और फिर से अन्दर भेज दिया अपनी प्रेमिका बहन की चूत में, निशा सिसक-सिसक कर अपनी पहली चुदाई का भरपूर आनंद ले रही थी एक बार झड़ने पर भी उसके आनंद में कोई कमी ना आयी.. हाँ मजा उल्टा दुगना हो गया चिकनी होने पर लंड चूत में सटासट-सटासट जा रहा था नीचे से निशा धक्के लगाती रही और ऊपर से संजय.. दौर जम गया और काफी लम्बा चलता रहा दोनों धक्के लगाते-लगाते एक दुसरे को चूम रहे थे चाट रहे थे और "आई लव यू" बोल रहे थे अचानक निशा ने एक आह.... के साथ फिर से रस छोड़ दिया उसके रस की गर्मी से संजय को लगा अब वह भी ज्यादा चल नहीं पायेगा संजय को चरम का अहसास होते ही अपना लंड एक दम से निकाल कर निशा के पतली कमर से चिपक के पेट पर रख दिया और निशा आँखें बंद किये हुये ही संजय के लंड से निकलने वाली बौछारों को गिनने लगी आखरी बूँद टपकते ही संजय उसके ऊपर गिर पड़ा निशा ने उसके माथे को चूम लिया और उसकी आँखों में देखकर कहने लगी, मैं तुझे किसी के पास नहीं जाने दूँगी जान... तू सिर्फ मेरा है "मेरा यार" मेरा प्यार....
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