क्योंकि वो समलैंगिक ह
Saturday, 12 August 2017
आपकी खिदमत में पेश है एक और सच्ची कहानी जो समलैंगिक जिंदगी के एक और पहलू को उजागर करती है।
यह कहानी राजस्थान के जोधपुर की है.. पात्र के आग्रह पर उनका बदला हुआ नाम यहाँ पर प्रयोग करूंगा क्योंकि समलैंगिकता एक ऐसा अभिशाप है जिसको हमें सारी उमर भुगतना है..
खैर छोड़िए.. इस विषय का कोई अंत नहीं है इसलिए मैं कहानी की शुरुआत करने जा रहा हूँ।
मेरा नाम ललित है, मैं राजस्थान के जोधपुर का रहने वाला हूँ.. मैं समलैंगिक हूँ और मुझे लंड देखना व मुंह में लेकर चूसना पसंद है इस बात का पता लगे हुए मुझे ज्यादा दिन नहीं हुए थे।
कद-काठी की बात करें तो मैं थोड़ा मोटा हूँ.. मेरा बदन लड़कियों की तरह नर्म और मुलायम है… मेरी छाती कुछ कुछ लड़कियों जैसी है और मेरे बूब्स भी उभरे हुए हैं.. जब टी-शर्ट पहनता हूँ तो वो उभरकर ऐसे लगने लगते हैं जैसे मैंने ब्रा पहन रखी हो और उसके अंदर मेरे चूचे कैद हो रखे हों.. जब चलता हूँ तो मेरे चूचे उछलते हुए चलते हैं.. और कई मर्द उन्हें देखते रहते हैं।
लेकिन अभी तक मैंने कोई लंड हाथ में नहीं पकड़ा था और ना ही चूसा था।
एक दिन की बात है जब मैं अपने पास की मार्किट में कुछ सामान लेने गया हुआ था, मुझे पेशाब लग आया तो मैं वहाँ के एक मूत्रालय में गया।
जब मैं मूत रहा था तो मेरी नज़र पास में खड़े एक आदमी के लंड पर पड़ी.. उसका लंड सोया हुआ भी 6 इंच का था और उसके हाथ में लटका हुआ मूत की मोटी सी धार मार रहा था जिसका शोर पूरे मूत्रालय में सुनाई दे रहा था।
मैं तो उसके जबरदस्त मोटे लौड़े को देखता ही रह गया.. लेकिन जल्दी ही उसको भी पता लग गया कि मैं उसके लंड को देख रहा हूँ और देखते ही देखते उसका लंड खड़ा होने लगा।
उसका लंड किसी जैक की तरह ऊपर उठता हुआ पूरा तन गया.. अब वो उसको हाथ में लेकर हिलाने लगा जिससे उसका लौड़ा 8 इंच का हो गया और उसका लाल सुपाड़ा फैलकर लॉलीपॉप की तरह हो गया और उत्तेजना में उसके लंड की टोपी की त्वचा पीछे खुल गई जिससे उसके लंड में और ज्यादा तनाव आ गया और वो उसके हाथ में ही झटके मारने लगा।
अब मेरी भी हालत खराब हो रही थी, पहली बार लंड देखा था और वो भी इतना मोटा.. मैं तो तड़प रहा था उसे हाथ में लेने के लिए.. उसे जीभ फिराकर चाटने और चूसने के लिए..
वो आदमी भी मुझे देखते हुए कि मैं उसका लंड देख रहा हूँ, अपने लौड़े को हिलाए जा रहा था, उसके चेहरे पर हवस का नशा मैं साफ देख सकता था!
ना उससे बर्दाश्त हो रहा था और ना मुझसे, लेकिन मैं घबराहट की वजह कुछ बोल नहीं रहा था, क्योंकि कभी ऐसा किया नहीं था.. तो फिर उस अधेड़ उम्र के आदमी ने ही पहल करते हुए कहा- क्या बात है.. लेना है क्या?
मैंने हाँ में सिर हिला दिया।
वो फिर बोला- कोई जगह है आस-पास?
मैंने ना में सिर हिला दिया।
तो उसने कहा- ठीक है, मेरे पीछे पीछे आओ, मैं ले चलता हूँ तुम्हें!
उसने अपना खड़ा लंड मुश्किल से एडजस्ट करते हुए पैंट की चेन में अंदर धकेला और शर्ट से उसको ढकते हुए मूत्रालय के बाहर निकल गया..
मैं भी बिना कुछ सोचे समझे उसके पीछे पीछे चलने लगा।
मार्किट से कुछ दूर चलने के बाद हम इलाके के बाहरी हिस्से में आ गए.. जहाँ पर कुछ पुराने खंडहर थे।
वो मेरी तरफ मुडा़ और मुझे अंदर आने का इशारा करके एक खंडहर के अंदर चला गया.. वहाँ ज्यादा रोशनी नहीं थी इसलिए मुझे डर लग रहा था।
एक बार मन किया कि वापस भाग जाऊँ लेकिन फिर उसके मोटे लंड को चूसने के ख्याल ने मुझे उस खंडहर के अंदर जाने पर मजबूर कर दिया.. मैं भी अंदर चला गया।
जाकर देखा तो वो खंडहर की दीवार के साथ कमर लगाए हुए मेरा इंतजार कर रहा था।
मेरे अंदर जाते ही वो सीधा खड़ा हुआ और पैंट के ऊपर से ही लंड को पकड़कर हिलाते हुए मुझे दिखाने लगा और फिर उसको सहलाने लगा।
उसका लंड पैंट में फिर से तन गया।
अब उसने मुझे पास आने का इशारा किया।
मेरे पास जाते ही उसने अपनी पैंट उतार अंडरवियर नीचे खींच लिया और अपने लंड को आगे करते हुए मेरे हाथ में थमा दिया..
ओह.. क्या गजब भारी लौड़ा था उसका..
पहली बार किसी का लंड हाथ में लिया था.. मेरे तो मन में उसको चूसने की आग लग गई और मैं तपाक से नीचे बैठा और उसकी पैंट और अंडरवियर को घुटनों तक सरकाते हुए उसके लंड के सुपाड़े को मुंह में ले गया और उसको लॉलीपॉप की तरह चूसने लगा।
जैसे ही मैंने उस पर जीभ फिराना शुरु किया वो ‘आह.. आह…’ की आवाज निकालने लगा और बोला- पूरा ले ले मेरी जान…ये तेरा ही है चूस जा इसे.. आह.. कहकर उसने लंड मेरे गले में उतार दिया।
मेरी आंखें बाहर आ गईं… मैंने उसके हाथ सिर पर से हटाते हुए उससे दूर हटने लगा.. लेकिन उसने फिर से पूरा लंड गले तक दे दिया.. फिर अपने ही हाथों से आगे पीछे करते हुए मेरे मुंह को चोदने लगा।
उसने मेरे बाल अपनी मुट्ठी में भींच लिए और लंड को मुंह में पेलने लगा।
अब मुझे भी मजा आने लगा.. उसके लंड से हल्की हल्की वीर्य की गंध भी आ रही थी लेकिन उसका लंड चूसना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
अब मेरे हाथ उसकी नंगी गांड पर फिरने लगे और मैंने उसे दोनों हाथों से दबा लिया और लौड़े को जीभ से चाटते हुए मजे से चूसने लगा।
5 मिनट तक ऐसे ही लंड चुसाई चली.. उसके बाद उसने मुझसे खड़े होने के लिए कहा।
खड़े होते ही उसने मेरे हाथ ऊपर करवा कर टी-शर्ट निकाल दी और मेरे चूचे नंगे हो गए।
उसने दोबारा अपना लंड मेरे हाथ में दे दिया… मेरे हाथ में लंड देकर वो आगे पीछे करने लगा और मेरे चूचों को मसलने लगा.. मेरे चूचों पर किसी मर्द के हाथों का अहसास मुझे पहली बार हुआ था और वो मुझे पागल किए जा रहा था.. मैं सिसकारी लेता हुआ चूचे दबवा रहा था और सेक्स में डूबता जा रहा था।
उसके लंड को इसी उत्तेजना में मैं जोर जोर से रगड़ने लगा.. वो भी पागल होने लगा.. हमारी आहें सारे खंडहर में सुनाई दे रही थीं।
अब उसने मेरे चूचे अपने मुंह में ले लिये.. हाय.. मैं तो मर ही गया.. उसकी गर्म जीभ जब मेरे निप्पलों पर तैर रही थी तो मैं आनन्द के सागर में डूबने लगा.. मैं मजे के मारे उसके बालों को नोचने लगा और उसका मुंह अपने चूचों में दबा दिया।
मेरे चूचे चूसते हुए उसके हाथ मेरे चूतड़ों पर फिर रहे थे और वो मेरी फांकों के बीच में उंगली फिराता हुआ मेरे चूतड़ों को सहला रहा था।
मेरा एक उसके लंड पर था और दूसरा उसके सिर के बालों को नोच रहा था।
कुछ देर वो ऐसे ही मेरे बदन से खेलता रहा, फिर उसने मुझे खंडहर की दीवार की तरफ मुंह करने को कहा।
मैं घूम गया और उसने मेरे हाथ दीवार पर चिपकाते हुए अपने हाथों के नीचे दबा लिये।
मैं नीचे से बिल्कुल नंगा अपने गोल गोल नंगे चूतड़ लिए उसके लंड पर अपने चूतड़ों को रगड़ रहा था..
वो भी पीछे से बिना लंड डाले ही मुझे बाहर से चोदने की कोशिश कर रहा था और धक्के मारते हुए अपने बदन को मेरे बदन रगड़ते हुए मुझे दीवार में धकेल रहा था..
उसका लंड मेरी गांड में घुसने के लिए फड़फड़ा रहा था.. अब उसने अपने दोनों हाथों को मेरी बगलों से आगे की तरफ निकालते हुए मेरे दोनों चूचों को दबा लिया और उनको भींचने लगा।
मैं बदहवास होने लगा.. उसके लंड का मेरी गांड पर रगड़ना और उसके सख्त हाथों का मेरे चूचों को दबाना.. आह.. आह… मैं उसके नशे में खो सा गया..
अब उसने मेरी गांड में लंड घुसाने की कोशिश तेज कर दी और मेरे छेद को लंड से टटोलता हुआ उसमें अपना 8 इंच का लौड़ा घुसाने की कोशिश करने लगा।
उसका लंड काफी लंबा भी था और मेरे चूतड़ मोटे होने के बाद भी छेद पर आराम से पहुंच रहा था।
वो मेरे ऊपर चढ़ने लगा.. जैसे कोई सांड किसी भैंस पर चढ़ता है लेकिन लंड अंदर नहीं जा रहा था।
मेरे कदम लड़खड़ाने लगे लेकिन अपना जोर लगाते हुए मेरे ऊपर चढ़ने की कोशिश करते हुए मुझे दीवार में धकेले जा रहा था और दोनों हाशों से मेरे चूचे भी मसले जा रहा था।
तीन चार कोशिशों के बाद उसका लंड का सुपारा मेरी गांड के छेद में घुसने लगा..
‘आह.. आह.. चला जा अंदर.. आह जा रहा है..’
‘आह.. मर गया..’
टोपी अंदर घुसने लगी..
‘आह..’
वो चढ़ता रहा..
‘आह.. आराम से..’
‘बस बस.. हो गया.. आह..ओह पूरा लंड अंदर घुस गया.. आह.. क्या गर्म गांड है तेरी हाय जान.. चोद दूं तुझे.. आह मेरी रंडी..’
कहते हुए उसने मेरे चूचों के निपल चुटकी में मसल दिए और मेरी गर्दन पर चूमने लगा।
धीरे अब उसने लंड को आगे पीछे धकेलना शुरु किया.. मेरा दर्द पहले से कम हो चुका था.. वो मेरे चूचे पकड़े हुए मुझे चोदने लगा.. उसके लंड ने मेरी गांड को खोल के रख दिया था जिसका अहसास मुझे अंदर बाहर जाते हुए लंड से हो रहा था।
उसने अपने एक हाथ की उंगली मेरे मुंह में दे दी, मैं उसे चूसने लगा और दूसरे हाथ से वो मेरी गांड को सहलाते हुए चोदने लगा।
उसके धक्कों से मेरा सिर दीवार पर टकरा रहा था और मैं छिपकली की तरह दीवार से लगा हुआ अपनी गांड उठाकर उससे चुदवा रहा था।
‘आह मेरी रानी.. तू तो गजब है..’ कहते हुए वो मेरी गांड को पेल रहा था।
पांच मिनट तक चुदाई चलती रही और उसकी स्पीड एकाएक बढ़ने लगी.. उसने मेरा गला पकड़ लिया और जोर जोर से धक्के मारने लगा।
वो मेरी गांड को फाड़ देना चाहता था।
अब मेरा दर्द बर्दाश्त के बाहर होने लगा और आंखों से आंसू आने लगे.. मैं रोता हुआ उससे चुद रहा था लेकिन उसके मोटे लंड की चुदाई मजा भी उतना ही दे रही थी।
वो चोदता गया.. चोदता गया.. और 2 मिनट बाद मुझे दीवार में धकेलते हुए मेरी गांड में वीर्य का फव्वारा मारने लगा.. और मेरे ऊपर निढाल हो गया।
उस दिन वो मेरी पहली चुदाई थी..
हम दोनों ने अपने कपड़े पहने और सही करके खंडहर से निकल लिए।
हमने फोन नम्बर भी लिए और उसने जल्दी ही दोबारा मिलने का वादा किया और हम अपनी अपनी राह चले गए।
एक हफ्ते बाद उसने मुझे फिर बुलाया.. हम उसी सुनसान जगह पर गए.. मैंने उसने लंड को पैंट पर से पकड़ कर हाथ में ले लिया.. उसका लौड़ा तन गया..
मैंने चेन खोलना चाही तो उसने मेरा हाथ रोक लिया।
मैंने कहा- क्या हुआ, आज नहीं चुसवाओगे क्या?
‘चुसवाउँगा… लेकिन तुम्हें मेरा एक काम करना होगा!’
‘क्या काम है?’
‘मुझे पैसे चाहिएँ?’
‘पैसे?’
‘हाँ पैसे…’
‘कितने पैसे चाहिएँ?’
‘पांच हजार…’
‘लेकिन इतने पैसे मैं कहाँ से लाऊँगा? ‘मैं तो एक स्टूडे़ंट हूँ और थोड़ी सी पॉकेटमनी मिलती है।’
‘कहीं से भी ला, मुझे नहीं पता!’
‘यह आप कैसी बात कर रहे हो? मैं इतने पैसे नहीं दे पाऊँगा।’
कहते ही उसने मेरे मुंह पर जोर का तमाचा मारा- साले गंडवे.. लंड तो बड़े मजे से चूस रहा था.. पैसे नहीं देगा?
मेरी आंखों से आंसू आने लगे..
अगले ही पल उसने मेरे सिर में पर थप्पड़ मारा- साले रंडी की औलाद! अगर लंड चाहिए तो पैसे ले आना.. नहीं तो मुझे फोन मत करना कभी!
कह कर वो मुझे रोता हुआ छोड़कर वहाँ से चला गया।
मुझे नहीं पता था कि एक समलैंगिक को अपनी इच्छा पूरी करने के लिए इतना जलील होना पड़ता है… मेरी आत्मा जैसे फूट फूट कर रो रही थी.. और भगवान से पूछ रही थी.. कि मुझे समलैंगिक क्यों बनाया तूने.. क्या मुझे सारी उम्र ऐसे ही रो रो कर जीना है?
दोस्तो, ललित सिर्फ अकेला ऐसा गे नहीं है जो इस तरह की प्रताड़ना का शिकार हुआ है.. पता नहीं कितने ही गे अपनी इच्छाओं को पूरी करने के लिए इस तरह की घटनाओं का शिकार होते हैं.. कुछ को लूट लिया जाता है और कुछ खुद ही लुट जाते हैं..
क्यों?
क्योंकि वो समलैंगिक है.. उनको एक सामान्य जीवन जीने का कोई हक़ नहीं है..?
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